शेरशाह सूरी सुर राजवंश की नीव रखने वाला एक एसा शशक था, जिसकी बहादुर और साहस के किससे भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गये है| अपनी वीरता के बल पर शेर शाह सूरी दिल्ली के तख्त पर बैठा और दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया|
साल 1540 में शेरशाह ने मुगल साम्राज्य पर शासन किया था| शेरशाह सूरी ही थे, जिसने मुगल शासक हुमायूं को चौसा की लड़ाई में बुरी तरह पराजित कर उन्हें युद्ध मैदान छोड़ने के लिए विवश किया था| वही मुगल सम्राट हुमायूं और शेर शाह सुरी भले ही कट्टर दुश्मन थे, लेकिन हुमायूं भी शेरशाह सूरी के पराक्रम का लोहा मानते थे और उनकी काबिलियत की मुरीद थे| चौसा की लड़ाई के बाद ही शेरशाह सूरी शेर खां की उपाधि से नवाजा गया था|
आईये दोस्तों अब हम जानते है की हिंदुस्तान में सुर सम्राज्य की नीव रखने वाले और शेरों का शिकार के शौकीन शेरशाह शुरी के बारे में|
शेरशाह सूरी का इतिहास
नाम – शेरशाह सूरी (फरीद खान, शेर खान)
जन्म – 1485 हिसार, हरियाणा (रोहतास जिले के सासाराम में)
मृत्यु – 22 मई 1545 बुन्देलखंड के कालिंजर में
पिता – हसन खान सूरी
पत्नी – रानी साह
पुत्र – इस्लाम शाह सूरी
सम्मारक – दिल्ली के पुराने किले पर कीला-ए-कुहना मस्जिद. रोहतास किला, पटना में शेरशाह सूरी मस्जिद
शेरशाह सूरी का जन्म और शुरुआती जीवन
भारतीय इतिहास का यह साहसी योद्धा शेरशाह सूरी के जन्म के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं| किसी के मुताबिक उनका जन्म 1486 में हरियाणा के हिसार में हुआ था, तो कई इतिहासकारों के मुताबिक शेरशाह 1472 में बिहार के सासाराम जिला में पैदा हुए थे| उनके पिता हसन खान एक जागीरदार थे| शेरशाह को बचपन में फरीद खान के नाम से पुकारते थे, वहीं जब हुए 15 साल के हुए तो वे अपना घर छोड़कर जयपुर चले गए थे, जहां पर शेरशाह ने फारसी और अरबी भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया|
उसके पिता ने शेरशाह के प्रशाशनिक कौशल को देखते हुए एक परगने की जिम्मेदारी सौंप दी,जिसके बाद शेरशाह सूरी ने उस समय किसानों के दर्द को समझा और सही लगा देकर किसानों को न्याय दिलवाया एवं भ्रष्टाचार को मिटाने का फैसला लिया|
फरीद खान से ऐसे ही बने शेर खां
साल 1522 मैं शेरशाह को बिहार के स्वतंत्र शासक के बहार खान लोहानी का सहायक नियुक्त किया गया| इसके शेर खान की बुद्धिमता और कुशलता को देखते हुए बहार खान ने उन्हें अपने बेटे जलाल खान के टीचर के रूप में नियुक्त कर लिया| फिर एक दिन बहार खान ने शेर शाह सुरी को शेर का शिकार करने का आदेश दिया, जिसके बाद शेर खान ने अकेले ही अपने साहस और पराक्रम से शेर का मुकाबला किया और शेर के जबड़े के दो हिस्से कर उसे मार गिराया| जिसकी वीरता से बहार खान बेहद प्रभावित हुआ और खुश होकर उसे शेरखान की उपाधि प्रदान की| वहीं चलकर वह शेरशाह सूरी के नाम से प्रख्यात हुआ|
जबकि उनका कुलनाम सूरी उनके गृहनगर से लिया गया था| शेरशाह की वीरता के चर्चे हर तरफ होने लगे और उसकी ख्याति चारों तरफ बढ़ने लगी| जिससे बहार खान के अधिकारियों ने जलन के कारण शेरशाह को बराह खान के दरबार से निकलने के लिए षड्यंत्र रचा| जिसके बाद शेरशाह सूरी मुगल सम्राट बाबर सेना में शामिल हो गया और वहां भी शेरशाह ने अपनी सेवा के दम पर अपनी एक अलग पहचान विकसित की|
शेरशाह पैनी नजर रखने वाले शाहजहां थे, वह बहार खान के दरबार से बाहर तो हो गए थे, लेकिन हमेशा से ही उनकी नजर लोहानी की सत्ता पर थी, क्योंकि शेरशाह इस बात को भलीभांति जानते थे कि बराह खान के बाद लोहनी शासन पर राज करने वाला कोई काबिल व्यक्ति नहीं है, इसलिए बराबर के सेवादार के रूप में मुगल शासक और उनकी सेना की ताकत कमजोरी और कमियों को बारीकी से समझने लगे|
हालांकि बाद में शेर शाहसुरी ने मुगलों का साथ छोड़ने का फैसला लिया और वे बिहार वापस आ गए वहीं बहार खान की मौत के बाद उसकी बेगम ने सम्राट शेरशाह सूरी को बिहार का सूबेदार बना दिया, जिससे शेरशाह के आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया और शेरशाह बाद में मुगलों के सबसे बड़े दुश्मन बने|
हुमांयू और शेरशाह
शेरशाह सूरी ने खुद को मुगलों का वफादार बताते हुए चलाकि से 1537 ईस्वी में बंगाल पर आक्रमण कर दिया और बंगाल के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया| दरअसल 1535 से 1537 ईस्वी में हुमायूं आगरा में नहीं था और वह अपने मुगल साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अन्य क्षेत्रों में ध्यान केन्द्रित कर रहा था, तभी शेरशाह सूरी ने इस मौके का फायदा उठाकर आगरा में अपनी सत्ता मजबूत कर ली और इसी दौरान उसने बिहार पर भी पूर्ण रूप से अपना कब्जा जमा लिया|
वहीं इसी दौरान मुगलों के शत्रु अफगान सरदार भी उनके समर्थन में खड़े हो गए लेकिन शेरशाह एक बेहतर, चतुर, कूटनीतिज्ञ शासक था, जिसने मुगलों के अधीन रहने कि बात करते हुए उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बड़ी खूबसूरती के साथ षड्यंत्र रचा|
वही शेरशाह सूरी का गुजरात के शासक बहादुर शाह से भी अच्छे संबंध थे| बहादुर शाह ने शेरशाह की धन और दौलत से भी काफी मदद की थी| जिसके बाद शेरशाह ने अपनी सेना और अधिक मजबूत कर ली थी| इसके बाद शेरशाह ने बंगाल में राज करने के लिए बंगाल के सुल्तान पर आक्रमण कर दिया और जीत हासिल की एवं बंगाल की सुल्तान से उसने काफी धन दौलत और स्वर्ण मुद्रा भी जबरदस्ती ली थी|
इसके बाद 1538 ईस्वी में एक तरफ जहां मुगल सम्राट हुमायूं ने चुनार के किले पर अपना अधिकार जमाया,
वहीं दूसरी तरफ शेरशाह ने भी रोहतास के महत्वपूर्ण और शक्तिशाली किले पर अपना अधिकार कर लिया एवं उसने बंगाल को निशाना बनाया और इस तरह शेरशाह बंगाल के गौड़ क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने में कामयाब हुआ|
हुमायूं और शेर खान के बीच चौसा एवं बिलग्राम का प्रसिद्ध युद्ध एवं श्री साम्राज्य की स्थापना
1539 ई. में बिहार के चौसा नामक जगह पर हुमायूं और शेर शाह सुरी की मजबूत सेना के बीच कड़ा मुकाबला हुआ इस संघर्ष में हुमायूं की मुगल सेना को शेरशाह की अफगान सेना से हार का सामना करना पड़ा|
शेरशाह सूरी की सेना ने पूरी ताकत और पराक्रम के साथ मुगल सेना पर इतना भयंकर आक्रमण किया कि मुगल सम्राट हुमायूं युद्ध क्षेत्र से भागने के लिए विवश हो गए जबकि इस दौरान बड़ी तादाद में मुगल सेना ने अपनी जान बचाने के चलते गंगा नदी में डूब कर अपनी जान दे दी|
अफगान सरदार शेरखान की इस युद्ध में बड़ी जीत के बाद शेर खान ने शेर शाह की उपाधि धारण कर अपना राज्य अभिषेक करवाया| उसने अपने नाम के सिक्के चलाए और खुतबे पढवाए| इसके बाद 17 मई 1540 ईस्वी में हुमायूं ने अपने खोए हुए क्षेत्रों को फिर से वापस पाने के लिए बिलग्राम और कन्नौज की लड़ाई लड़ी और शेर शाह सुरी की सेना पर हमला किया लेकिन इस बार भी शेरखान की पराक्रमी अफगान सेना के मुकाबले बेहतर थी|
हुमायूं की मुगल सेना कमजोर पड़ गई और इस तरह शेरशाह सूरी ने जीत हासिल की और दिल्ली के सिंहासन पर बैठे एवं अपने साम्राज्य को पूर्व में असम की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में कन्नौज एवं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण की बंगाल की खाड़ी में झारखंड की पहाड़ी तक बढ़ा दिया था|
वहीं हुमायूं और शेर खान के बीच एक युद्ध एक निर्णायक युद्ध साबित हुआ| इस युद्ध के बाद हिंदुस्तान में बाबर द्वारा बनाया गया मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया और देश की राज्य सत्ता एक बार फिर से पठानों के हाथों में आ गई इसके बाद शेरशाह सूरी द्वारा उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की गई| वही यह भारत में लोधी समराज्य के बाद यह दूसरा पठान समराज्य बन गया|
शेरशाह सूरी के शासनकाल में विकास और महत्वपूर्ण काम
शेरशाह सूरी जनता की भलाई के बारे में सोचने वाला एक लोकप्रिय शाशक था, जिसने अपने शासनकाल में जनता के हित के लिए काम किए जो इस प्रकार हैं:-
भारतीय पोस्टल विभाग को किया विकसित
मध्यकालीन भारत में सबसे सफल शासकों में से एक शेर शाह सूरी ने अपने शासनकाल में भारत में पोस्टल विभाग को विकसित किया था उसने उत्तर भारत में चल रही डाक व्यवस्था को दोबारा संगठित किया था, ताकि लोग अपने संदेशों को अपने करीबियों और परिजनों को भेज सकें|
शेरशाह सूरी ने विशाल ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ का निर्माण करवाया
शेरशह सूरी एक दूरदर्शी एवं कुशल प्रशासक था, जो कि विकास के कामों का करना अपना कर्तव्य समझता था यही वजह है कि सूरी ने अपने शासनकाल में एक बेहद विशाल ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ का निर्माण करवाया यातायात की व्यवस्था की थी|आपको बता दें कि सूरी जी दक्षिण भारत को उत्तर के राज्य से जोड़ना चाहते थे,इसलिए उन्हें इस विशाल रोड का निर्माण करवाया था|
सूरी द्वारा बनाई यह विशाल रोड बांग्लादेश से होती हुई दिल्ली और वहां से काबुल तक होकर जाती थी|वहीं इस रोड का सफर आरामदायक बनाने के लिए शेरशाह सुरी ने कई जगहों पर कुएं मस्जिद और विश्राम गृह का निर्माण भी करवाया था इसके अलावा शेरशाह सूरी ने यातायात को सुगम बनाने के लिए और नए रोड जैसे कि आगरा से जोधपुर लाहौर से मुल्तान और आगरा से बुरहानपुर तक कई सड़कों का निर्माण करवाया था|
भ्रष्टाचार के खिलाफ
शेरशाह सूरी एक न्यायप्रिय और ईमानदार शासक था| जिसने अपने शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी नीतियाँ बनाई|
शेरशाह ने अपने शासनकाल के दौरान मस्जिद के मौलवियों एवं इमामो के द्वारा इस्लाम धर्म के नाम पर किए जा रहे भ्रष्टाचार पर ना सिर्फ लगाम लगाई बल्कि उसने मस्जिद के रखरखाव के लिए मौलवियों को पैसा देना बंद कर दिया एवं मस्जिदों की देखरेख के लिए मुंशियों की नियुक्ति कर दी|
शेरशाह सूरी ने अपने विशाल साम्राज्य को 47 अलग-अलग हिस्सों में बांटा
इतिहासकारों के मुताबिक सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य का विकास करने और सभी व्यवस्था सुचारू रूप से करने के लिए अपने साम्राज्य को 47 अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया था, जिसे शेरशाह सूरी ने सरकार नाम दिया था|
वही यह 47 सरकार छोटे छोटे जिलों में तब्दील कर दी गई जिसे परगना कहा गया| हर सरकार के दो अलग-अलग प्रतिनिधि एक सेनाध्यक्ष और दूसरा कानून का रक्षक होता था, जो सरकार से जुड़े सभी विकास कामों के लिए जिम्मेदार होते थे|
वहीं इतिहासकारों के मुताबिक शेरशाह के बाद मुगल सम्राट अकबर और उसके बाद कई बादशाहो ने सूरी के द्वारा बनाई गई नीतियों को कायम रखा|
अंतिम समय में सूरी ने जीता कालिंजर का किला
शेरशाह ने नवंबर 1544 में उत्तर प्रदेश के कालिंजर के किले पर डेरा डाल दिया और 6 महीने तक किले को घेरने के बाद भी जब शेरशाह को कामयाबी हासिल नहीं हुई तब उसने किले पर बारूद और गोला चलाने के आदेश दिए|
इसी दौरान 12वीं में विस्फोट की वजह से शेरशाह सूरी बुरी तरह घायल हो गए लेकिन इस हालत में भी उन्होंने अपने धैर्य को नहीं खोया और अपने दुश्मनों का पूरी वीरता के साथ मुकाबला करते रहे और इस तरह उन्होंने अपने अंतिम समय में कालिंजर के किले पर अपनी जीत हासिल कर ली| लेकिन 22 मई 1545 में हुए हमेशा के लिए दुनिया को छोड़ कर चले गए|
वही शेरशाह सूरी की मौत के बाद उनके बेटे इस्लाम शाह ने सिहांसन संभाला इस तरह शेरशाह सूरी ने अपने अद्भुत साहस और पराक्रम के बल पर हुमांयू जैसे प्रसिद्ध मुगल सम्राट को भी बुरी तरह से हराया|
शेरशाह सूरी का मकबरा
शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम शहर में बना हुआ है| इसका निर्माण शेरशाह सूरी के जीवित रहते ही शुरू करवा दिया गया था लेकिन शेर शाह सूरी की मौत के करीब 3 महीने बाद अगस्त 1545 में इस मकबरे का निर्माण पूरा किया गया था|