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Rajiv Gandhi Prime Minister of India
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944, मुंबई महाराष्ट्र में हुआ | राजीव गांधी इन्दिरा गांधी और फिरोज गांधी के बड़े पुत्र और जवाहरलाल नेहरू के नाती, भारत के सातवें प्रधानमन्त्री थे। राजीव का विवाह एन्टोनिया माईनो से हुआ जो उस समय इटली की नागरिक थी। विवाहोपरान्त उनकी पत्नी ने नाम बदलकर सोनिया गांधी कर लिया | राजीव गांधी से उनकी मुलाकात तब हुई जब राजीव गांधी कैंब्रिज में पढने गये थे | सोनिया गांधी शादी 1968 में हुई थी, जिसके बाद वे भारत में रहने लगी | राजीव गांधी के दो बच्चे है | पुत्र का नाम राहुल गांधी (1970) और पुत्री का नाम प्रियंका गांधी (1972) में हुआ |
राजीव गांधी प्रधानमंत्री कब बने
राजीव गांधी पहले एयरलाईन पाईलट की नौकरी करते थे | 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज में दुर्घटना के बाद माता श्री इंदिरा गान्धी के साथ 1981 में राजीव गांधी ने 1981 में राजनीति में प्रवेश किया | उनका रानजीति में कोई इंटरस्ट नही था | राजीव गांधी अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने और 31 अक्टूबर 1984 में अंगरक्षको द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने |
देश के कंप्युटराइजेशन और टेलीकम्यूनिकेशन क्रान्ति का श्रेय उन्हें जाना हैम इसलिए राजीव गांधी को भारत में सुचना क्रान्ति का जनक के रूप में जाना जाता है | मतदाता की उम्र 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष तक के युवाओं को चुनाव में वोट देने का अधिकार राजीव गांधी ने दिलवाया।
राजीव गांधी डेथ
चुनावों का प्रचार करते हुए 21 मई, 1991 को ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम’ नामक आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों ने राजीव गांधी की एक बम विस्फ़ोट में हत्या कर दी गई |
काफी समय तक राजीव गांधी का नाम भी इस मामले के अभियुक्तों की सूची में शामिल रहा लेकिन उनकी मौत के बाद नाम फाइल से हटा दिया गया। सीबीआई को इस मामले की जाँच सौंपी गयी लेकिन सरकारें बदलने पर सीबीआई की जाँच की दिशा भी लगातार बदलती रही। जब जोगिन्दर सिंह सीबीआई चीफ़ थे तो एजेंसी स्वीडन से महत्वपूर्ण दस्तावेज लाने में सफल हो गयी थी। जोगिन्दर सिंह ने तब दावा किया था कि केस सुलझा लिया गया है। बस, देरी है तो क्वात्रोक्की को प्रत्यर्पण कर भारत लाकर अदालत में पेश करने की। उनके हटने के बाद सीबीआई की चाल ही बदल गयी।
इस बीच कई ऐसे दाँवपेंच खेले गये कि क्वात्रोक्की को राहत मिलती गयी। दिल्ली की एक अदालत ने हिन्दुजा बन्धुओं को रिहा किया तो सीबीआई ने लन्दन की अदालत से कह दिया कि क्वात्रोक्की के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं हैं। अदालत ने क्वात्रोक्की के सील खातों को खोलने के आदेश जारी कर दिये। नतीजतन क्वात्रोक्की ने रातों-रात उन खातों से पैसा निकाल लिया | 2007 में रेड कार्नर नोटिस के बल पर ही क्वात्रोक्की को अर्जेन्टिना पुलिस ने गिरफ्तार किया। वह बीस-पच्चीस दिन तक पुलिस की हिरासत में रहा। सीबीआई ने काफी समय बाद इसका खुलासा किया। सीबीआई ने उसके प्रत्यर्पण के लिए वहाँ की कोर्ट में काफी देर से अर्जी दाखिल की। तकनीकी आधार पर उस अर्जी को खारिज कर दिया गया, लेकिन सीबीआई ने उसके खिलाफ वहाँ की ऊँची अदालत में जाना मुनासिब नहीं समझा।
नतीजतन क्वात्रोक्की जमानत पर रिहा होकर अपने देश इटली चला गया। पिछले बारह साल से वह इंटरपोल के रेड कार्नर नोटिस की सूची में है। सीबीआई अगर उसका नाम इस सूची से हटाने की अपील करने जा रही है तो इसका सीधा सा मतलब यही है कि कानून मन्त्रालय, अटार्नी जनरल और सीबीआई क्वात्रोक्की को बोफोर्स मामले में दलाली खाने के मामले में क्लीन चिट देने जा रही है।
यह ऐसा मसला है, जिस पर 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गयी थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो के तौर पर उभरे थे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार भी बोफोर्स दलाली का सच सामने लाने में विफल रही थी। बाद में भी समय-समय पर यह मुद्दा देश में राजनीतिक तूफान लाता रहा। इस प्रकरण के सामने-आते ही जिस तरह की राजनीतिक हलचल शुरू हुई, उससे साफ है कि बोफोर्स दलाली आज भी भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।
Rajiv Gandhi in Hindi
16 अप्रैल, 1987- यह दिन भारतीय राजनीति, और मुख्यतः कांग्रेस के लिए भूचाल लाने वाला सिद्ध हुआ। स्वीदेन के रेडियो ने दावा किया कि कम्पनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को घूस दिए हैं। 60 करोड़ रुपये घूस देने का दावा किया गया। राजीव गांधी उस समय भारत के प्रधानमन्त्री थे।
20 अप्रैल, 1987- लोकसभा में राजीव गांधी ने बताया था कि न ही कोई रिश्वत दी गई और न ही बीच में किसी बिचौलिये की भूमिका थी।
नवम्बर, 1989- भारत में आम चुनाव हुए और कांग्रेस की बड़ी हार हुई और राजीव गांधी प्रधानमन्त्री नहीं रहे।
22 जनवरी, 1990- सीबीआई ने आपराधिक षडयन्त्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया। मामला एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिन्दुजा बन्धुओं के खिलाफ दर्ज हुआ।
फरवरी 1990- स्विस सरकार को न्यायिक सहायता के लिए पहला आग्रह पत्र भेजा गया।
फरवरी 1992- बोफोर्स घपले पर पत्रकार बो एंडर्सन की रिपोर्ट से भूचाल आ गया।
दिसम्बर 1992- मामले में शिकायत को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया और दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।