हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART-1

हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART-2

मध्यकालीन भारत

महमूद गजनवी

महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए थे महमूद गजनवी ने 1009 ईस्वी में आनंद पाल को हराने के बाद नगरकोट पर आक्रमण किया और उसके खजाने को लूटा| नगरकोट किले पर तुर्कों पर कब्जा 1043 ई. तक रहा, जिसके बाद दिल्ली के तोमर राजा महिपाल ने नगरकोट से एक गजनवी शासन की समाप्ति की| महमूद गजनवी ने 1023 तक नगरकोट को छोड़कर कांगड़ा के अधिकतर हिस्सों पर अधिकार नहीं कर पाया था| त्रिलोचन पाल और उसके पुत्र भीमपाल की मृत्यु के उपरांत 1026 ई. में तुर्कों के अधीन कांगड़ा चला गया| 


तुगलक

मुहमद गौरी,गुलाम वंश (1206-1290) और खिलजी वंश (1290- 1320) ने पहाड़ी राज्यों पर ख़ास ध्यान नहीं दिया| मैदानी भागों से बहुत से राजपूतों ने 12 वीं सदी में हिमाचल की पहाड़ियों में अनेक राज्यों की स्थापना की| 


मुहमद बिन तुगलक

मुहमद बिन तुगलक(1335-1351 ई.) ने 1337 ई. में नगरकोट के राजा पृथ्वीचंद को पराजित करने के लिये सेना भेजी थी| जिसका उसने स्वयं नेतृत्व किया था| 


फिरोजशाह तुगलक

फिरोजशाह तुगलक (1351- 1388 ई.) कांगड़ा के राजा रूपचंद को सबक सिखाने के लिये 1361 ई. में नगरकोट पर आक्रमण किया| कांगड़ा अभियान और नगरकोट पर गिरी का जिक्र ‘तारीख ए फिरोजशाही’ मिलता है| राजा रूपचंद और फिरोज शाह तुगलक का बाद में समझौता हो गया और नगरकोट पर से घेरा उठा लिया| रूपचंद ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार कर ली|


फिरोजशाह तुगलक 1365 में समझौते के बाद ज्वालामुखी गया और 1300 संस्कृत पुस्तकों को फारसी में अनुवाद करवाने के लिए साथ ले गया| इन पुस्तकों का अनुवाद फारसी में प्रसिद्ध लेखक ‘अज्जुद्दीन खालिद्खानी’ ने किया और पुस्तक का नाम दलाई-ए-फिरोजशाही रखा| राजा रूपचंद की 1375 ईस्वी में मृत्यु के बाद उसका पुत्र सागर चंद राजा बना| सागर चंद के शासनकाल में फिरोज शाह के बेटे नसीरुद्दीन ने कांगड़ा में 1389 ईसवी में शरण ली| 


तैमुरलंग का आक्रमण

1398 ई. में मंगोलों का आक्रमण तैमुरलंग के नेतृत्व में हुआ| तैमुरलंग के आक्रमण के समय कांगड़ा का राजा मेघचंद था| तैमुरलंग ने वापसी में 1399 ई. में शिवालिक क्षेत्रों पर आक्रमण किया| तैमुरलंग के आक्रमण के समय हिन्डूर (नालागढ़) का शासक आलमचंद था जिसने तैमुरलंग की सहायता की जिसके फलस्वरूप तैमुरलंग हिन्डुर को हानि पहुचाये बिना आगे बढ़ा| उसने नूरपुर ( धमेरी) के आलावा सिरमौर क्षेत्र पर आक्रमण किया जिसका विरोध रतन सिहं द्वारा किया गया| 

                              मुगल शासन 


बाबर

बाबर ने 1525 में कांगड़ा के निकट मालौट में अपनी चौकी स्थापित की| बाबर ने 1526 ईसवी में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल शासन की स्थापना की थी|


अकबर

अकबर ने 1556 ईस्वी में सिकंदर शाह को पकड़ने के लिए नूरपुर में अपनी सेना भेजी क्योंकि नूरपुर के राजा भक्तमल कि सिकंदर शाह से दोस्ती थी| अकबर पहाड़ी राज्यों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए उनके बच्चों या रिश्तेदारों को दरबार में बंधक के तौर पर रखता था| अकबर ने कांगड़ा के राजा जयचंद को बंधक बनाया| जयचंद के पुत्र विधि चंद ने अकबर के विरुद्ध नूरपुर के राजा भक्तमल के साथ मिलकर विद्रोह किया| अकबर ने बीरबल को हुसैन अली खान के साथ मिलकर इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा|


अकबर ने 1572 ईसवी में टोडरमल को पहाड़ी रियासतों की जमीनों लेकर एक शाही जमीदारी स्थापित करने के लिए नियुक्त किया| इसमें कांगड़ा के 66 गांव और चम्बा के कुछ क्षेत्र शामिल थे| राजा जयचंद की 1585 ई. मैं मृत्यु के बाद उसका बेटा विधि चंद राजा बना| राजाबिधि चंद ने अपने पुत्र त्रिलोक चंद को बंधक के तौर पर मुगल दरबार में रखा| चंबा का राजा प्रताप सिंह बर्मन अकबर का समकालीन था| वह मुगलों के प्रति समर्पित था| सिरमौर का राजा धर्म प्रकाश अकबर का समकालीन था |


जहांगीर

जहांगीर 1605 ई. में गद्दी पर बैठा| कांगड़ा के राजा विधिचदं की 1605 ई. में मृत्यु हुयि| और उसका पुत्र त्रिलोकचंद गद्दी पर बैठा| जहांगीर ने 1615 ई. में कांगड़ा पर कब्जा करने के लिये नूरपुर (धमेरी) के राजा सूरजमल और शेख फरीद मुर्तजा खान को भेजा परन्तु दोनों में विवाह होने और मुर्तजा खान की मृत्यु होने के बाद कांगड़ा किले पर कब्जा करने की योजना को स्थगीत कर दिया गया|


जहांगीर ने 1617 ई. में फिर नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहमद तकी के नेतृत्व में कांगड़ा विजय के लिये सेना भेजी| राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापस बुला लिया था| 


राजा सूरजमल ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह कर दिया| जहांगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिये राजा राय विक्रमजीत सिहं और अब्दुल अजीज को भेजा| राजा सूरजमल ने मानकोट और तारागढ़ किले में शरण ली जो चंबा रियासत के अधीन था| 


चम्बा के राजा प्रताप वर्मन ने सूरजमल को समर्पण करने का सुझाव दिया परन्तु 1619 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी| कांगड़ा किला 1620 ई. में मुगलों के अधीन आ गया| जहांगीर को 20 नवबर, 1620 ई. को कांगड़ा किले पर कब्जे की खबर मिली| कांगड़ा किले को जितने में रजा सूरजमल के छोटे भाई जगत सिहं ने मुगलों की मदद की| 


कांगड़ा किले पर नवाब अलीखान के नेतृत्व में मुगलों का कब्जा और 1783ई. तक कब्जा| जहांगीर 1622 ई. में धमेरी (नूरपुर) आया| उसने अपनी पत्नी नूरजहाँ के नाम पर धमेरी का नाम रखा| कांगड़ा किले के एक दरवाजे का नाम ‘जहांगीर’ दरवाजा रखा गया| जहांगीर ने काँगडा किले के अंदर मस्जिद का निर्माण करवाया| 


जहांगीर के समय चम्बा के राजा जनार्धन जगत सिहं के बीच ‘ध्लोग का युद्ध’ हुआ जिसमे जगत सिहं विजयी हुआ| चम्बा पर 1623 ई. से लेकर 2 दशक तक जगत सिहं का कब्जा रहा| जगत सिहं मुगलों का वफादार था| सिरमौर का राजा बुधि प्रकाश (1605-1615) जहांगीर का समकालीन था| कांगड़ा किले का पहला मुगल किलेदार नवाब अलीखान था| 


शाहजहाँ

शाहजहाँ के शासन काल में नवाब असदुल्ला खान और कोच कुलीखान कांगड़ा किले के मुगल किलेदार बने| कोच कुलिखान 17 वर्षों तक मुगलों किलेदार रहा| उसे बाण गंगा नदी के पास दफनाया गया था| सिरमौर का राजा मन्धाता प्रकाश शाहजहाँ का समकालीन था| उसने मुगलों के गढवाल अभियान ने कई बार सहायता की थी| 


औरंगजेब

औरंगजेब के शासनकाल में कांगड़ा किले के मुगल किलेदार सैयद खान, खान अदुल्ला खान और नवाब सैयद खलीलुल्ला खान थे| औरंगजेब का समकालीन सिरमौर का राजा सुभग प्रकाश था| चम्बा के राजा चतर सिहं ने 1678 ई. में औरंगजेब के चम्बा के सारे मन्दिरों को गिराने के आदेश को मानने से मना कर दिया| उसने गुलेर,बसौली और जम्मू के राजाओं के साथ मिलकर पंजाब के मुगल सरदार मिर्जा रियाज बेग पराजित किया और उसने अपने क्षेत्रों को वापस प्राप्त किया|


मुगलों का पतन और घमंडचंद

औरंगजेब कि मृत्यु के बाद मुगलों का पतन शुरू हो गया| अहमदशाह दुरानी ने 1748 से 1788 ई. के बीच 10 बार पंजाब पर आक्रमण कर मुगलों की कमर तोड़ दी| राजा घमंडचंद ने इस मौके पर का फायदा उठाकर कांगड़ा और दोआब के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया| कांगड़ा किला अब भी मुगलों के पास था|


नवाब सैफ अली खान कांगड़ा किले के अंतिम मुगल किलेदार थे| अहमद शाह दुरानी ने 1759 ई. में घमंड चंद को जालंधर दोआब का नाजिम बना दिया| घमंडचंद का सतलुज से रावी तक के क्षेत्र पर एकछत्र राज हो गया| 


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