Indus Valley Civilization History
दोस्तों आपका हमारी वेबसाईट में स्वागत है| आज हमने अपने इस आर्टिकल में Indus Valley Civilization History In Hindi-सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास तथा आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी साझा की है| जो आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाली है|
सिंधु स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएं
सैन्धव सभ्यता के अन्तर्गत हमें कला का सुविकसित स्वरूप देखने को मिलता है। इस सभ्यता के शासक तथा समृद्ध व्यापारी कला के प्रेमी थे तथा उन्होंने इसके विकास में पर्याप्त योगदान दिया। इसी कला के अन्तर्गत स्थापत्य कला का विकास सिन्धु घाटी सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता है। सिन्धुकालीन उत्कृष्ट स्थापत्य कला की स्पष्ट छाप नगर नियोजन में देखने कोमिलती है।
सिंधु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन का मूल्यांकन कीजिए
सिन्धु सभ्यता के नगर जाल की तरह व्यवस्थित थे। तद्नुसार सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सिन्धु सभ्यता दो भागों में विभक्त थी-पश्चिमी टीले और पूर्वी टीले। पश्चिमी टीले अपेक्षाकृत ऊँचे किन्तु छोटे होते थे। इन टीलों पर किले अथवा दुर्ग स्थित थे। पूर्वी टीले पर नगर या आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं। यह टीला अपेक्षाकृत बड़ा था। इसमें सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अन्दर मुख्यतः महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सार्वजनिक भवन तथा अन्नागार स्थित थे| पश्चिमी दुर्गीकृत टीले जिसमें उच्च वर्ग के लोग रहते थे तथा इसे रिहायशी इलाका माना जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
आवासीय भवनों के आकार में काफी अंतर देखने को मिलता है। सबसे छोटे मकानों में दो से अधिक कमरे नहीं होते हैं, जबकि सबसे बड़े मकान महलों की भाँति विशाल एवं भव्यहोते हैं। भवन बिना किसी कटाव या प्लास्टर के सादे में होते थे। कालीबंगा के केवल एक मकान के फर्श में अलंकृत ईंटों का उपयोग किया गया है।एक छोटे मकान का भू-तल 8×9 मी होता था और बड़े मकान का भू-तल इससे दोगुना होता था| प्रत्येक दो मकानों के बिच 1 फुट की जगह होती थी| जो पड़ोसियों के बिच झगड़ों से बचने के लिए की गयी होगी| इन खाली स्थान के दोनों ओर के आखिरी भाग को ईंटों से बन्द कर दिया गया था, ताकि कोई दीवार न फाँद सके मकानों की दीवारें मोटी होती थी| जिससे प्रतीत होता है की कुछ मकान दो मंजिले थे| कुछ मकानों में पकाई गई ईंटों से बनी सीढ़ियाँ मिली हैं, पर अधिकतर लकड़ी की सीढ़ियों का प्रयोग होता था, जो अब नष्ट हो गई हैं। सीडियों की पौड़ियां संकरी एवं ऊँची थी| कहीं-कहीं उनकी ऊंचाई 36 सेमी एवं चौडाई 13 सेमी होती थी| जिससे की कम से कम जगह पर सीढ़ियाँ बन सकें|

हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की विशेषताएं
एक व्यापक जल निकासी प्रणाली सिन्दू घाटी सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी, जो हमे अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है| प्रमुख सडकों एवं गलियों के निचे से 1 से 2 फुट गहरी, इंटों एवं पत्थरों से ढकी तथा थोड़ी-थोड़ी दुरी पर सोख्तों और नालियों का कचरा छानने की व्यवस्था से युक्त नालियाँ होती थी| मुख्य नालियाँ एक नाले के साथ जुड़ी हुई थीं, जो सारे कचरे एवं गन्दे पानी को नदी में बहा देती थी। समस्त नालियों और स्रोतों की सफाई प्रायः सफाई कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और सफाई के लिए नालियों में कुछ-कुछ दूरी पर नरमोखे (मेनहोल) बने होते थे।
नगर योजना की भाँति यह व्यापक जल-निकास प्रणाली भी समकालीन सुमेरिया सभ्यता की प्रणाली से भिन्न थी। सुमेर के निवासी अधिकतर मामलों में अपने घरों के आंगन के नीचे मिट्टी की ऊर्ध्वाकार नालियाँ बनाते थे, पर उनमें जल-निकास द्वार नहीं थे। हड़प्पाई स्थल धौलावीरा अपनी जल संरक्षण के लिए विख्यात था। यहाँ की सबसे आश्चर्यजनक वस्तु विशाल जलाशय है, इसका आकार 804 मोx12 मी तथा गहराई 7.5 मी बीच झगड़ों से बचने लिए की गई होगी। इसमें 2 लाख 50 हजार घन मी पानी जमा करने की अद्भुत क्षमता थी| कुल मिलाकर व्यापक जल-विकास प्रणाली, उत्तम कोटि के घरेलू स्नानगृहों एवं नालियों की व्यवस्था हड़प्पाकालीन सभ्यता की प्रशंसनीय विशेषताएँ हैं, समग्र रूप से इस बात की ओर संकेत करती है कि वहाँ एक अत्यन्त प्रभावशाली नगर प्रशासन व्यवस्था रही होगी।
सिंधु घाटी सभ्यता में विशाल स्नानागार के अवशेष कहां से प्राप्त हुए
• यह मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक उल्लेखनीय जाती थी। स्मारक है, जो उत्तर से दक्षिण तक 180°(54.86 मी) तथा पूर्व से पश्चिम तक 108° (लगभग 33 मी) है। इसके केन्द्रीय खुले प्रांगण के बीच जलकुण्ड का जलाशय बना है।
• यह 39 फुट (11.89 मी) लम्बा, 23 फुट (7.01 मी) चौड़ा तथा 8 फुट (2.44 मी) गहराहै। इसमें उतरने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। जलाशय का फर्श पक्कीईंटों का बना है।
• फर्श तथा दीवार की चौड़ाई जिप्सम से की गई है। बाहरी दीवार पर बिटुमिन्स का 1 इंच मोटा(2.54 सेमी) प्लास्टर लगाया है, जिप्सम तथा बिटुमिनस जलाशय को सुदृढ़ बनाते हैं।
• विशाल स्नानागार भवन के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर एक नाली थी, जिसके द्वारा पानी निकलता था। जालशय के तीन ओर बरामदे और उनके पीछे कई-कमरे तथा गैलरियाँ थीं।
• इन्हीं में से एक कमरे में ईंटों की दोहरी पंक्ति से बनाया गया कुआं था, जिससे स्नानागार मेंपानी भरा जाता था, प्रत्येक कमरे में ईंटों की बनी सीढ़ी मिलती है, जिससे अनुमान किया जाता है कि इनके ऊपर दूसरी मंजिल भी रही होगी। मैके महोदय का अनुमान है कि इसमें पुजारी रहते होंगे, जो ऊपरी कक्ष में पूजा-पाठ तथा नीचे के कमरों में स्नान करने करते थे।
• वृहत स्नानागार के उत्तर में छोटे स्नानागार बने हैं। सम्भवतः वृहत स्नानागार सामान्य जनता के लिए था तथा इसका उपयोग धार्मिक समारोहों के अवसर पर किया जाता था। माशेल ने वृहत स्नानागार को तत्कालीन विश्व का एक आश्चर्यजनक निर्माण बताया है|
सिंधु सभ्यता में अन्नागार का क्या महत्व था
सिंधु सभ्यता स्नानागार के पश्चिम में 1.52 मी. ऊँचे चबूतरे पर निर्मित एक भवन मिला है, जो पूर्व से पश्चिम में 45.72 मी. लम्बा तथा उत्तर से दक्षिण में 22.86 मी. चौड़ा है। इस भवन को मार्टिमर हीलर ने अन्नागार बताया है। इसमें ईंटों के बने हुए विभिन्न आकार के 27 प्रकोष्ठ मिले है| अन्नागार में हवा जाने के लिए स्थान बनाये गये थे| उसके उत्तर और एक चबूतरा है| जो अन्न रखने तथा निकालने के समय उपयोग में ले जाता होगा| अन्नागार को सुदृढ़ आकार, हवा आने जाने की व्यवस्था तथा इसमें अन्न करने करने की सुविधा आदि नि:संदेह उच्च कोटि की थी| विद्वानों का मत है| की यह राजकीय भंडारागार था, जिसमें जनता से कर के रूप में वसूल किया हुआ अनाज रखा जाता था| मिस्त्र तथा मेसोपोटामिया की सभ्यताओं में भी इस प्रकार के अवशेष मिलते है|
सिंधु सभ्यता में सभागार
मोहनजोदड़ो में प्राप्त स्तूप के दक्षिण में 8 वर्ग मीटर का एक म्हाकक्ष मिला है| जिसकी छत इंटों से बने 20 आयताकार स्तम्भों पर स्थित थी| ये पांच-पांच स्तम्भों की चार पक्तियों में लगे थे| इन स्तम्भों की पक्तियों से बने चारों गलियारों को पकाई गई इंटों से पक्का बनाया गया था| यह महाकक्ष का उपयोग किसी धार्मिक सभा के लिए किया जाता रहा होगा| सर जॉन मार्शल ने इसकी तुलना के समय के पत्थरों को काटकर बनाए गये बौद्ध मंदिरों से की है, जबकि मैके के इसे विशाल बाजार कक्ष कहा है| जहाँ गलियारे के दोनों और स्थाई दुकाने बनी हुयी है|
हड़प्पा सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली की विवेचना करें
लोथल के नगर के दो भागों में विभाजित थे – दुर्ग (गढ़ी) तथा निचला नगर| सम्पूर्ण बस्ती एक ही प्राचीर से घिरी थी| प्राचीर के भीतर कच्ची इंटों से बने चबूतरों पर घर बनाए गए थे| घरो के निर्माण में प्राय: कच्ची ईंटो का प्रयोग किया गया था| कुछ विशिट भवन ही पक्की इंटों के बने थे| नालियों तथा स्नानगृह की फर्शों के निर्माण में पक्की इंटों का प्रयोग किया गया था|
दुर्ग के पश्चिम में ऊँचे चबूतरे पर 120 x 30 मीटर के आकार का एक भवन मिला है| जिसमे स्नानगृह और नालियां बनी थी| इसे ‘शासक का आवास’ बताया गया है| दुर्ग के ही समीप बने अन्नागार का अवशेष मिलता है| कुछ घरों से पशुओँ की हड्डियों, ताँबा, कांचली मिटटी के मनके सोने का एक आभूषण, जली हुई कुछ हड्डियाँ, वृताकार या चतुर्भुजाकार अग्निवेदियाँ पायी गयी है| निचला दुर्ग वाले क्षेत्रों से तिगुना विस्तृत था| यह कच्ची इंटों के चबूतरे पर बना था| यह चार खंडों में विभाजित था| खुदाई में चार सडकों के अस्तित्व का पता चला है| नगर के उत्तर में बाजार, पश्चिम में व्यवसायिक भवन तथा उतर में भवनों के आकार के अवशेष मिलते है|
यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पक्क इंटों का बना हुआ विशाल आकार (214 X 36 मीटर) का एक घेरा है, जिसे राव महोदय नें जहाजों की गोदी (डाक-यार्ड) में बताया है| इसकी उतरी दीवार में 12 मीटर चौड़ा प्रवेश द्वार या जिससे होकर जहाज आते-जाते थे| यह नहर द्वारा योग्वा नदी से जोड़ा गया था तथा इसी के जरिए गोदों में पानी आता था| लोथल की नगर एवं भवन योजना सुनोयिजित एवं सुव्यवस्थित थी| नालियों एवं नरमोखों का अति उतम प्रबंध देखने को मिलता है| जो यहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य तथा सफाई के प्रति सजगता का प्रमाण है|