History of Kullu District in Hindi

जिले के रूप में गठन  –  1963

जिला मुख्यालय       –   कुल्लू

जनसंख्या   घनत्व       – 79 (2011)

साक्षरता दर       –     80.14% (2011) में

लिंग अनुपात     –  950 (2011)

कुल गाँव      –     172 (आबाद गाव -172)

ग्राम पंचायतें      –   204

विकास खंड       –   5 

विधानसभा सीटें      –   4

हवाई अड्डा        –    भुंतर

लोकसभा क्षेत्र     – मंडी

कुल्लू रियासत की स्थापना – कुल्लू का पौराणिक ग्रंथों में ‘कुल्लू देश’ के नाम से वर्णन मिलता है| रामायण, विष्णुपुराण, महाभारत, मार्कन्डेय पुराण, वृहतसहिता ओर कल्हण की राजतरंगीणी में ‘कुललुत’ का वर्णन मिलता है| वैदिक साहित्य में कुल्लुत देश को गन्धर्वों की भूमि कहा गया है| कुल्लू घाटी को कुलांतपीठ भी कहा गया है क्यूंकि इसे रहने योग्य संसार का अंत माना गया है|

कुल्लू रियासत की स्थापना विहंगमणिपाल ने हरिद्वार (मायापुरी) से आकर की थी| विहंगमणिपाल के पूर्वज इलहाबाद (प्रयागराज) से अल्मोड़ा और फिर हरिद्वार आकर बस गये थे| विहंगमणिपाल स्थानीय जागीरदारों से पराजित होकर प्रारम्भ में जगतसुख स्थापित की| विहंगमणिपाल के पुत्र पच्छपाल ने ‘गजन’ और ‘बेवला’ के राज को हराया|

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कुल्लू रियासत की सात वजिरियां

परोल वजीरी (कुल्लू)

वजीरी रूपी (पार्वत और सैंज खड्ड के बिच)

वजीरी लग महाराज (सरवरी ओर सुलतानपुर से बजौरा तक)

वजीरी भंगाल

वजीरी लाहौल

वजीरी लग सारी (फोजल ओर सरवरी खड्ड के बिच)

वजीरी सिराज (सिराज को जालौरी दर्रो को दो भागों मर बाँटता है)

महाभारत काल – कुल्लू रियासत कि कुल देवी हिडिम्बा ने भीम से विवाह किया था| घटोत्कछ भीम और हिडिम्बा का पुत्र था जिसने महाभारत युद्ध में भाग लिया| भीम ने हिडिम्ब (तांडी) का वध किया था जो देवी राक्षसी हिडिम्बा का भाई था|

हेन्सांग का विवरण – चीनी यात्री हेन्सांग ने 635ई. में कुल्लू रियासत की यात्रा की उन्होंने कुल्लू रियासत की परिधि 800 किमी बताई जो जलंधर से 187 किमी दूर था| उसके अनुसार कुल्लू रियासत में लगभग एक हजार बौद्ध भिक्षु म्हायाल का अधयन्न करते थे| भगवान बुद्ध के कुल्लू भ्रमण की याद में अशोक में बौध स्तूप बनवाया|

विसुधपाल – नग्गर के राजा कर्मचन्द को युद्ध में हराकर विसुधपल ने कुल्लू की राजधानी जगतसुख से नग्गर स्थानातरित की|
रूद्रपाल और प्रसिद्धपाल – रूद्रपाल के शासनकाल में स्पीती के राजा ने राजेन्द्र सेन ने कुलु पर आक्रमण करके उसे नजराना देने के लिये विवश किया| प्रसिद्ध पाल ने स्पीती के राजा छेतसेन से कुल्लू और चम्बा के राजा से लाहौल को आजाद करवाया|

द्तेशवर पाल – दतेशवरपाल के समय चम्बा के राजा मेरुवर्मन (680 – 700 ई.) ने कुल्लू पर आक्रमण क्र द्तेशवर पाल को हराया और वह इस युद्ध में मारा गया| द्तेश्वर पाल पालवंश का 31 वां राजा था|

जारशवर पाल (780 – 800 ई.) – जारेश्वर पाल ने बुशहर रियासत की सहायता से कुल्लू को चम्बा से मुक्त करवाया|

भूप पाल – कुल्लू के 43 वें राजा भूपपाल सुकेत राज्य के संस्थापक वीरसेन के समकालीन थे| वीरसेन ने सिराज में भूपपाल को हराकर उसे बंदी बनाया|

पड़ोसी राज्यों के पाल वंश पर आक्रमण – हस्पताल-2 के समय बुशहर, नरिंदर पाल के समय बंगाहल, नंदपाल के समय कांगड़ा, केरल पाल के समय सुकेत ने कुल्लू पर आक्रमण कब्जा किया और नजराना देने के लिये मजबूर किया|

उर्दान पाल (1418-1428 ई.) – पाल वंश के 72 वें राजा उर्दानपाल ने जगतसुख में संध्या देवी का मंदिर बनवाया|

पाल वंश का अंतिम शासक – कैलाश पाल (1428 – 1450 ई.) कुल्लू का अंतिम राजा था जिसके साथ ‘पाल’ उपाधि का प्रयोग हुआ| सम्भवत: वह पालवंश का अंतिम राजा था|

सिहं बदानी वंश – कैलाशपाल के बाद के 50 वर्षों के अधिकतर समय में कुल्लू सुकेत रियासत के अधीन रहा| वर्ष 1500 ई. में सिद्ध सिहं ने बदानी वंश की स्थापना की| उन्होंने जगतसुख को अपनी राजधानी बनाया|

बहादुर सिहं (1532 ई.) – बहादुर सिहं सुकेत के राजा अर्जुन सेन का समकालीन था| बहादुर सिहं ने वजीरी रूपी को कुल्लू राज्य का भाग बनाया| बहादुर सिहं ने मकरसा में अपने लिये महल बनाया| मकरसा की स्थापना महाभारत के विदुर के पुत्र मकस ने की थी| राज्य की राजधानी उस समय नग्गर थी| बहादुर सिह ने अपने पुत्र प्रताप सिहं का विवाह चम्बा के राजा गणेश वर्मन की बेटी से करवाया| बहादुर सिहं के बाद प्रताप सिहं (1559 -1575), परतब सिहं (1575 – 1608) पृथ्वी सिहं (1608-1635) और कल्याण सिह (1635 – 1637) मुगलों के अधीन रहकर कुल्लू पर शासन कर रहे थे|

जगत सिहं (1637–72 ई.) – जगत सिहं कुल्लू रियासत का सबसे शक्तिशाली राजा था| जगत सिहं ने लग वजीरी और बाहरी सिराज पर कब्जा किया| उन्होंने डुग्गीलग के जोगचंद और सुलतानपुर के सुलतानचंद (सुलतानपुर का संस्थापक) को 1650 –55 के बीच पराजित कर ‘लग’ वजीरी पर कब्जा किया| औरंगजेब उन्हें ‘कुल्लू का राजा’ कहते थे| कुल्लू के राजा जगत सिहं ने 1640 ई. में दाराशिकोह के विद्रोह किया तथा| 1657 ई. में उसके फरमान को मानने से मना कर दिया था|

राजा जगत सिहं ने ‘टिप्परी’ के ब्राह्मण की आत्महत्या के दोष से मुक्त होने के लिये राजपाठ रघुनाथ जो कि सौंप दिया| राजा जगत सिहं ने 1653 में दामोदर दास (ब्राह्मण) से रघुनाथ जी की प्रतिमा अयोध्या से मंगवाकर स्थापित कर राजपाठ उन्हें सौंप दिया| राजा जगत सिहं के समय से ही कुल्लू के ढालपुर मैदान पर कुल्लू का दशहरा मनाया जाता है| राजा जगत सिहं ने 1660 ई. में अपनी राजधानी नग्गर से सुलतानपुर स्थानांतरित की| जगत सिहं ने 1660 ई. में रघुनाथ जी का मंदिर और महल का निर्माण करवाया था|

मानसिहं (1688 – 1702 ई.) – कुल्लू के राजा मानसिहं ने मंडी पर आक्रमण कर गम्मा (द्रंग) नमक की खानों पर 1700 ई. में कब्जा किया| उन्होंने 1688 ई. में वीर भंगाल क्षेत्र पर नियन्त्रण किया| उन्होंने लाहौल-स्पीती  को अपने अधीन कर तिब्बत की सीमा लिंगटी नदी के साथ निर्धारित की| राजा मानसिहं ने शांगरी और बुशहर रियासत के पड्रा ब्यास क्षेत्र को बीस अपने अधीन किया| उनके शासन में कुल्लू रियासत का क्षेत्रफल 10,000 वर्ग मील हो गया|

राजासिहं (1702-1731 ई.) – राजा राजसिहं के समय गुरु गोबिंद सिहं जी ने कुल्लू की यात्रा की|

टेढ़ी सिहं (1742- 1767 ई.) – राजा टेढ़ी सिहं के समय घमंड चंद ने कुल्लू पर आक्रमण किया|

प्रीतम सिहं (1767 – 1806) – प्रीतम सिहं संसारचंद द्वितीय का समकालीन राजा था| उसके समय कुलु का वजीर भागचंद था|

विक्रम सिहं (1806 – 1816 ई.) – राजा विक्रम सिहं के समय में 1810 ई. कुल्लू पर पहला सिख आक्रमण हुआ जिसका नेतृत्व दीवान मोहकम चंद कर रहे थे|

अजीत सिहं (1816 – 1841 ई.) – राजा अजीत सिहं के समय में 1820 ई. में विलियम मुरक्राफ्ट ने कुल्लू की यात्रा की| कुल्लू प्रवास पर आने वाले वह पहले यूरोपीय यात्री थे| राजा अजित सिहं को सिख सम्राट शेरसिहं ने कुल्लू रियासत खदेड़ दिया(1840 ई. में)| ब्रिटिश सरंक्षण के अधीन सांगरी रियासत में शरण लेने के बाद 1841 ई. में अजीत सिहं की मृत्यु हो गयी| कुल्लू रियासत 1840 ई. से 1846 ई. तक सिखों के अधीन रहा|

ब्रिटिश सता एवं जिला निर्माण – प्रथम सिख युद्ध के बाद 9 मार्च 1846 ई. को कुल्लू रियासत अंग्रेजो के अधीन आ गया| अंग्रेजों ने वजीरी रूपी को कुल्लू के शासकों को शासन करने के लिये स्वतंत्र रूप से प्रदान किया| लाहौल-स्पीती को 9 मार्च 1846 ई. में कुल्लू के साथ मिलाया गया| स्पीती को लद्दाख से कुल्लू में मिलाया गया| कुल्लू को 1846 ई. में कांगड़ा का उपमंडल बनाकर शामिल किया गया| कुल्लू उपमंडल का पहला सहायक आयुक्त कैप्टन हेय था| सिराज तहसील का मुख्याल्य बंजार था| स्पीती को 1862 में सिराज से निकालकर कुल्लू कि तहसील बनाया गया| वर्ष 1863 ई, में वायसराय लार्ड एल्गीन कुल्लू आने वाले प्रथम वायसराय थे| कुल्लू उपमंडल से अलग होकर लाहौल स्पीती का गठन 30 जून,1960 को हुआ| कुल्लू उपमंडल को 1963 ई. में कांगड़ा से अलग कर पंजाब जिला बनाया गया| कुल्लू जिले के पहले उपायुक्त गुरुचरण सिहं थे| कुल्लू जिले का 1 नवम्बर, 1966 ई. को पंजाब से हिमाचल  प्रदेश में विलय हो गया|

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