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हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART – 1

हिमाचल प्रदेश के इतिहास की प्राचीन काल के सिक्कों शिलालेखों साहित्य यात्रा वृतांत और वंशावलियों के अध्ययन के द्वारा हम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जो कि सीमित मात्रा में उपलब्ध है जिनका विवरण निम्नलिखित है|

 

सिक्के – हिमाचल प्रदेश में सिक्कों की खोज का काम हिमाचल प्रदेश राज्य संग्रहालय की स्थापना के बाद गति पकड़ने लगा|  भूरी सिंह म्यूजियम और राज्य संग्रहालय शिमला में त्रिगर्त औदुंबर कुलूटा और कुनीद राजवंशों के सिक्के रखे गए हैं| शिमला राज्य संग्रहालय में रखे 12 सिक्के अर्की से प्राप्त हुए है| अपोलोडोट के  21 सिक्के हमीरपुर के टप्पामेवा गांव से प्राप्त हुए हैं| चंबा के ल्चोड़ी और सरोल से इंडो ग्रीक के कुछ सिक्के प्राप्त हुए हैं| कुल्लू का सबसे पुराना सिक्का पहली सदी में राजा विर्यास द्वारा चलाया गया था|

 

शिलालेख/ताम्र पत्र – कांगड़ा के प्थ्यार और कनिहारा के अभिलेख हाटकोटी में सोनपुर के गुफा के शिलालेख मंडी के स्लोनु के शिलालेख द्वारा हिमाचल प्रदेश के प्राचीन समय की सामाजिक आर्थिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं| भूरी सिंह म्यूजियम चंबा में चंबा से प्राप्त 36 अभिलेखों को रखा गया है| जो कि शारदा और टांकरी दोनों में लिखे हुए हैं| कुल्लू के शलारू अभिलेखों से गुप्त काल की जानकारी प्राप्त होती है| 

 

साहित्य – रामायण और महाभारत के अलावा ऋग्वेद में हिमालय में निवास करने वाली जनजातियों का विवरण मिलता है| ‘तारीख ए फिरोजशाही’ और ‘तारीख ए फरिश्ता’ में नगरकोट किले पर फिरोजशाह तुगलक के हमले का प्रमाण मिलता है|  ‘तूजुक ए जहांगिरी’ में जहांगीर के कांगड़ा आक्रमण तथा ‘तुजुक ए तैमूरी’ से  तैमूर लंग के शिवालिक पर आक्रमण की जानकारी प्राप्त होती है|

 

यात्रा वृतांत- हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना विवरण टॉलमी ने किया है जिसने कुलिंदों का वर्णन मिलता है| जिन्हें यात्री हेनसांग 638 से 648 AD तक भारत में रहा|  इस दौरान वह कुल्लू और त्रिगर्त आया| थॉमस कोरवाट विलियी विलियम फिंच ने औरंगजेब के समय हिमाचल प्रदेश की यात्रा की| 

 

वंशावलियाँ – वंशावली की तरफ सर्वप्रथम विलियम मूरक्राफ्ट ने काम किया| और कांगड़ा के राजाओं की वंशावली खोजने की सहायता की| कैप्टन हरकोर्ट ने कुल्लू की वंशावली प्राप्त की| बाद में कनिघम में कांगड़ा, चंबा, मंडी, सुकेत और नूरपुर राजघरानों की वंशावली खोजी| 

 

                             

प्राचिन इतिहास 

 

प्रागैतिहासिक काल 

मारकंडा और सिरसा सतलुज घाटी में पाए गये औजार चालीस हजार वर्ष पुराने है| हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक काल मध्य एशिया से आर्यों तथा भारत के मैदानी इलाकों से पहाड़ों पर लोगों के बसने का इतिहास प्रस्तुत करता है| भारत के मैदानों से आकर बसने वाले लोगों से पूर्व कोल जिन्हें आज कोली, हाली, डोम, और चनाल कहा जाता है| सम्भवत: हिमाचल प्रदेश के निवासी है|

 

वैदिक काल और खस – ऋग्वेद में हिमाचल प्रदेश के प्राचीन निवासियों का दस्यु  निषाद और दशास के रूप में वर्णन मिलता है| दस्यु राजा सांभर के पास यमुना से व्यास के बीच पहाड़ियों में 99 किलो थे| ऋग्वेद के अनुसार दस्यु राजा सांभर और आर्य राजा दिवोदास के बीच 40 वर्षों तक युद्ध हुआ| अंत में दिवोदास ने उदब्रज नामक स्थान पर सांभर का वध किया| मंगोलोयाड जिन्हें वोट और किरात के नाम से जाना जाता है, हिमाचल में बसने वाली दूसरी प्रजाति बन गई|

 

ये लोग हिमाचल के उपरी क्षेत्रों में बस गये| आर्य या खस हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करने वाली तीसरी प्रजाति थी| खसों के सरदार को ‘मवाना’ कहा जाता था| ये लोग खुद को क्षत्रिय मानते थे| समय के साथ ये खस समूह जनपदों में बदल गये| वैदिक काल में पहाड़ों पर आक्रमण करने वाला दूसरा आर्य राजा सहसर्जुन था, जिसने जमदग्नि ऋषि की गायें छीन ली थी| जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम ने सहसर्जुन का वध कर दिया|

 

परशुराम के डर से क्षत्रिय खस उपरी भू-भाग में आकर बस गये और मवाणा राज्यों की स्थापना की| उतर वैदिक काल में बहुत से साधू संतों ने हिमाचल को अपनी कर्मभूमि बनाया| रेणुका से जमदग्नि, मणिकर्ण से वशिष्ट, निरमंड से परशुराम और बिलासपुर में व्यास गुफा से ऋषि ब्यास सबंधित है| 

 

महाभारत काल और चार जनपद 

महाभारत काल के समय त्रिगर्त के राजा सुशर्मा ने महाभारत युद्ध में कौरवों की सहायता कि थी| पांडवों के अग्यात्वास के समय हिमाचल की उपरी पहाड़ियों में व्यतीत किया था| कश्मीर, औद्बम्बर और त्रिगर्त के शासक युधिष्ठर को कर देते थे| कुलिंद रियासतों ने पांडवों के अधीनता स्वीकार की थी| कुल्लू की कुल देवी राक्षसी हिडिम्बा का भीम से विवाह हुआ था| महाभारत में 4 जनपदों का विवरण मिलता है|

 

1- औदुम्बर – महाभारत के अनुसार औदुम्बर विश्वमित्र के वशंज थे, जो कौशिक गोत्र से सम्बन्धित थे| औदुम्बर राज्यों के सिक्के कांगड़ा, पठानकोट, ज्वालामुखी, गुरदासपुर, और होसियारपुर के क्षेत्रों में मिले है| जो उनके निवास स्थान की पुष्टि करते है| ये लोग शिव की पूजा करते थे| पाणिनि के ‘गनपथ’ में भी औदुम्बर जाती का विवरण मिलता है| अदुम्ब्र वृक्ष कि बहुलता के कारण यह औदुम्बर कहलाया| 

 

2- त्रिगर्त – त्रिगर्त जनपद की स्थापना 8 विं BC से 5 विं BC के बीच सुशर्मा चंद द्वारा कि गयी| सुशर्मा चन्द्र ने महाभारत में कौरवों की सहायता की थी| सुशर्मा चंद ने पांडवों को अज्ञातवास में शरण दने वाले मत्स्य राज ‘वीराट’ पर आक्रमण किया था| जो कि उसका पड़ोसी राज्य था| त्रिगर्त रावी, व्यास और सतलुज नदियों के बीच का भाग था| सुशर्मा चंद ने कांगड़ा किला बनाया और नगरकोट को अपनी राजधानी बनाया| कनिष्क ने 6 राज्यों समूहों को त्रिगर्त का हिस्सा बनाया था| कौरव शक्ति,जलमनी और जानकी ब्रह्मगुप्त त्रिगर्त के हिस्से थे| 

 

3- कुलूत – कुलूत राज्य ब्यास नदी के उपर का इलाका था| जिसका विवरण रामायण, महाभारत और मत्स्य पुराण में मिलता है| इसकी प्राचीन राजधानी नग्गर थी| जिसका विवरण पाणिनि कि ‘क्त्रेयादी’ में मिलता है| कुल्लू घाटी के राजा विर्यास के नाम से 100 ईसवी का सबसे पुराना सिक्का मिलता है| इस पर ‘प्राकृत’ और ‘खरोष्ठी’ भाषा में लिखा गया है| कुल्लू रियासत की स्थापना ‘प्रयाग’ इलाहाबाद से आये विहंगमणिपाल ने की थी| 

 

4- कुलिंद – महाभारत के अनुसार पुलिस द्वारा अर्जुन ने विजय प्राप्त की थी| कुलिंद रियासत ब्यास, सतलुज और यमुना के बीच की भूमि थी, जिसमें सिरमौर शिमला अम्बाला और सहारनपुर के क्षेत्र थे| वर्तमान समय में ‘कुनैत या कनैत’ का संबंध कुलिंद से माना जाता है|  कुलींद के चांदी के सिक्के पर राजा अमोघ मूर्ति का नाम खुदा हुआ मिला है|  यमुना नदी का पौराणिक नाम ‘कालिंदी’ है और इसके साथ-साथ पर पड़ने वाले क्षेत्र को कुलिंद कहा गया है|

 

सिकन्दर का आक्रमण – सिकन्दर ने 326 BC के समय भारत पर आक्रमण किया और ब्यास नदी तक पहुंच गया| सिकन्दर के सैनिकों ने ब्यास नदी के आगे जाने से इनकार कर दिया| इसमें सबसे प्रमुख उसका सेनापति ‘कोयिनोस’ था| सिकन्दर ने व्यास नदी के तट पर अपने भारत अभियान कि निशानी ओए तौर पर बाहर स्तूपों का निर्माण करवाया था जो अब नष्ट हो चुके है|

 

मौर्य काल – सिकंदर के आक्रमण के पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में एक विशाल राज्य की स्थापना की| विशाखदत के मुद्राराक्षस के अनुसार किरात, कुलिंद और खस आदि युद्धप्रिय जातियों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती होकर नंदवंश को समाप्त करने में योगदान दिया|

 

चंद्रगुप्त मौर्य ने बाद में इन पहाड़ि राज्यों पर कब्जा करने का प्रयास किया, जिसका की कुलूत के राजा चित्रवर्मन सहित 5 राजाओं ने मिलकर विरोध किया| कुलिंद राज्य को मौर्य काल में शिर्मौर्य कहा गया| क्योकि कुलिंद राज्य मौर्य सम्राज्य के शीर्ष पर स्थित था| कालांतर में यह शिरमौर्य सिरमौर बन गया| 

 

मौर्यउतर काल – मौर्य के पतन के बाद शुंग वंश पहाड़ी गणराज्य को अपने अधीन नहीं रख पाए और वह स्वतंत्र हो गए| ईसा पूर्व का प्रथम शताब्दी के आसपास शकों का आक्रमण शुरू हुआ | शकों  के बाद कुषाणों का सबसे प्रमुख राजा कनिष्क के शासन काल में पहाड़ी राज्यों ने समर्पण कर दिया और कनिष्क की अधीनता स्वीकार कर ली|

 

कुषाणों के 40 सिक्के कालका-कसौली  के सामने सड़क पर मिले हैं| कनिष्ठ का सिक्का कांगड़ा के कनिहारा में मिला है| पहाड़ी राजा किसानों के साथ अपने सिक्के चलाने के लिए स्वतंत्र थे| 

 

गुप्त काल गुप्त सम्राज्य की नीव चंद्रगुप्त प्रथम के दादा श्री गुप्त ने रखी|  समुद्रगुप्त जिसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था| हरीशेण  शहर के इलाहाबाद प्रशस्ती से पता चलता है कि पहाड़ों के सभी राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी और समुद्रगुप्त को अपना स्वामी बनाकर जागीरदारों की तरह उसे कर देते थे|

 

उसकी सारी भूमि गुप्त वंश राज्य की मानी जाती थी| गुप्त काल के गणराज्य का जिक्र नहीं मिलता है शायद वह शकों के राजा मिलिंद के आक्रमण से दुर्बल होकर अन्य राज्यों से मिल गया होगा|

 

हुण – गुप्त वंश की समाप्ति का मुख्य कारण हूणों का आक्रमण था उनका प्रमुख राजा ‘तोरमाण’ और उसका पुत्र मिहिरक्कुल था गुज्जर और गति स्वयं को और उनके वंशज मानते थे|

 

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