हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART-1
हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART-2
हिमाचल प्रदेश का इतिहास PART-3
History of Himachal Pradesh in hindi
सिख
गुरु नानक देव जी ने कांगड़ा, ज्वालामुखी, कुल्लू, सिरमौर और लाहौल स्पीति की यात्रा की| पांचवें सिख गुरु अर्जुन देव जी ने पहाड़ी राज्यों में भाई कलियाना को हरमिंदर साहिब ‘स्वर्ण मंदिर’ के निर्माण के लिए चंदा एकत्र करने के लिए भेजा| गुरु गोविंद जी बिलासपुर के राजा की तोहफे में दी गई भूमि पर ‘किरतपुर’ का निर्माण किया| सिख गुरु तेग बहादुर जी ने बिलासपुर से जमीन लेकर मखोवाल गाँव की स्थापना की जो बाद में
आनंदपुर साहिब कहलाया|
गुरु गोविन्द सिहं
गुरु गोविंद सिंह और कहलूर के राजा भीम चंद के बीच सफेद हाथी को लेकर मनमुटाव हुआ जिसे आसाम की रानी रतनराय ने दिया था| गुरु गोविंद सिंह 5 वर्षों तक पौंटा साहिब रहे और दशम ग्रंथ की रचना की|
गुरु गोविंद सिंह और कल्लू के राजा भीमचंद्र उसके चलते गढ़वाल के फतेह शाह और हंडूर दूर के राजा हरिचंद के बीच 1686 ईस्वी में ‘भगानी साहिब’ का युद्ध लड़ा गया जिसमें गुरु गोविंद सिंह जी विजयी रहे|
नालागढ़ के राजा हरिचंद की मृत्यु गुरु गोविंद सिंह के तीर से हो गई|युद्ध के बाद गुरु गोविंद सिंह ने हरिचंद के उत्तराधिकारी को भूमि लौटा दी और दीपचंद के साथ भी उनके संबंध मधुर हो गए| राजा भीम चंद ने मुगलों के विरुद्ध गुरु गोविंद से सहायता मांगी|
गुरु गोविंद सिंह ने नदौन में मुगलों को हराया| गुरु गोविंद सिंह ने मंडी के राजा सिद्ध सेन के समय मंडी और कुल्लू की यात्रा की| गुरु गोविंद सिंह जी की 1708 ईस्वी में नांदेड़ (महाराष्ट्र) में मृत्यु हो गई बंदा बहादुर की मृत्यु के बाद सिंह 12 मिसलों में बंट गये|
कांगड़ा किला,संसार चंद, गोरखे और महाराजा रंजीत सिहं – राजा घमंड चंद ने जस्सा सिहं रामगढ़िया को हराया कांगड़ा की पहाड़ियों पर आक्रमण करने वाला पहला सिंह जस्सा सिंह रामगढ़िया था|
घमंडचंद की मृत्यु के उपरांत संसारचंद द्वितीय ने 1782 ई. में जय सिया कन्हैया की सहायता से मुगलों से कांगड़ा किला छीन लिया| जय सिह कन्हैया ने 1783 में कांगड़ा किला अपने कब्जे में लेकर संसार चंद को देने से मना कर दिया| जय सिहं कन्हैया ने 1785 ईस्वी में संसार चंद को कांगड़ा किला लौटा दिया|
संसार चंद
संसार चंद-II कांगड़ा का सबसे शक्तिशाली राजा था| वह 1775 ई, में कांगड़ा का राजा बना| उसने 1786 ई. में ‘नेरटी शाहपुर’ युद्ध में चम्बा के राजा को हराया था| वर्ष 1786 से 1805 ई. तक का काल संसारचंद के लिये स्वर्णिम काल था| उसने 1787 ई. में कांगड़ा किले पर कब्जा किया|
संसारचंद ने 1794 ई. में कहलूर (बिलासपुर) पर आक्रमण किया| यह आक्रमण उसके पतन का कारण बना| कहलूर के राजा ने पहाड़ी शाशकों के संघ के माध्यम से गोरखा अमर सिहं थापा को राजा संसार चंद को हराने के लिये आमंत्रित किया|
गोरखे
गोरखे सेनापति अमर सिहं थापा ने 1804 ई. तक कुमायूं, गढ़वाल, सिरमौर तथा शिमला की 30 हिल्स रियासतों पर कब्जा कर लिया था| 1806 ई. को अमर सिहं थापा महलमोरियो (हमीरपुर) में संसार चंद को पराजित किया|
संसार चंद ने कांगड़ा जिले में शरण ली वहां 4 वर्षों तक रहा| अमर सिंह थापा ने 4 वर्षों तक कांगड़ा किले पर घेरा डाल रखा था| संसार चंद ने 1809 में ज्वालामुखी जाकर महाराणा रणजीत सिंह से मदद मांगी दोनों के बीच 1809 ईसवी में ज्वालामुखी संधि हुई|
महाराणा रंजीत सिहं
1809 ई. में महाराजा रंजीत सिहं ने गोरखों पर आक्रमण कर अमर सिहं थापा को हराया और सतलुज के पूर्व धकेल दिया| संसार चंद ने महाराजा रणजीत सिहं को 66 गाँव और कांगड़ा किला सहायता में बदले में दिया| देसा सिहं मजेठिया को कांगड़ा किला और कांगड़ा का नाजिम 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिहं ने बनाया|
महाराजा रणजीत सिहं ने 1813 में हरिपुर (गुलेर) बाद में नूरपुर और जसवां को अपने अधिकार में लिया| 1818 में दतारपुर 1825 में कूटलहर को हराया| वर्ष 1823 ई. में संसार चदं की मृत्यु हो गयी|
अंग्रेज (ब्रिटिश)
ब्रिटिश और गोरखे
गोरखों ने कहलूर के राजा महानचंद के साथ मिलकर 1806 में संसार चदं को हराया| मार सिहं थापा ने 1809 ई. में भागल के राणा जगत सिहं को भगाकर अर्की में कब्जा कर लिया| अमर सिहं थापा ने अपने बेटे रंजौर सिहं को सिरमौर पर आक्रमण करने के लिये भेजा| राजा कर्मप्रकाश (सिरमौर) ने ‘भुरीया’ (अम्बाला) भागकर जान बचाई|
नाहन और जातक किले पर गोरखों का कब्जा हो गया| 1810 ई. में गोरखों ने हिंडूर और जुब्बल क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया| अमर सिहं थापा ने बुशहर रियासत पर 1811 ई. में आक्रमण किया| अमर सिहं थापा 1813 ई. तक रामपुर में रहा उसके बाद अर्की वापस लौट आया|
गोरखा ब्रिटिश युद्ध
मेजर जनरल डेविड ओक्टरलोनी और मेजर जनरल रोलो गिलेस्पी के नेतृत्व में अंगेजों ने गोरखों के विरुद्ध युद्ध लड़ा| मेजर गिलेस्प्पी ने 4400 सैनिकों के साथ गोरखा सेना को कलिंग के किले में हराया जिसका नेतृत्व बलभद्र थापा कर रहे थे|
अमर सिहं थापा के पुत्र रंजौर सिहं ने नाहन से जातक किले में जाकर अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंचाई| अंग्रेजों ने 16 जनवरी 1815 को डेविड आक्टरलोनी के नेतृत्व में अर्की पर आक्रमण किया| अमर सिहं थापा मालौण किले में चला गया जिससे तारागढ़,रामगढ़ के किले पर अंग्रेजों का कब्जा जो गया|
सुगैती कि संधि
अमर सिहं थापा ने अपने और अपने पुत्र रंजौर सिहं जो कि जातक दुर्ग की रक्षा कर रहा था के सम्मानजनक और सुरक्षित वापसी के लिए 28 नवंबर 1815 को ब्रिटिश मेजर जनरल डेविड ओक्ट्रनोली के साथ ‘सुगैली संधि’ पर हस्ताक्षर किए| इस संधि के अनुसार गोरखों को अपने निजी संपत्ति के साथ वापस सुरक्षित नेपाल जाने का रास्ता प्रदान किया गया|
ब्रिटिश और पहाड़ी राज्य
अंग्रेजों ने पहाड़ी रियासतों से किए वादों का पूर्ण रुप से पालन नहीं किया| राजाओं को उनकी गद्दियाँ तो वापस दे दी लेकिन महत्वपूर्ण स्थानों पर अपना अधिकार बनाए रखा| अंग्रेजों ने उन्हें रियासतों पर भी कब्जा कर लिया जिनके राजवंश समाप्त हो गए थे, जिनमें उत्तराधिकारी के लिए झगड़ा था| पहाड़ी शासकों को युद्ध के तौर पर भारी धनराशि अंग्रेजों को देनी पड़ती थी|
अंग्रेजों ने पहाड़ी राज्यों की बैठक बुलाई ताकि गोरखों से प्राप्त क्षेत्रों का बंटवारा किया जा सके| बिलासपुर कोटखाई, भादल और बुशहर को 1815 से 1819 तक सनद प्रदान की गई| कुमार सेन, बालचंद, सरोज कुमार मंगल, धामी को स्वतंत्र सनदें प्रदान कि गई|
सिखों के घर के कारण बहुत से राज्यों ने अंग्रेजों की शरण ली नूरपुर के राजा की श्रृंखला और सुबाथू छावनी में अंग्रेजों की शरण ली| बलबीर सेन मंडी के राजा ने रंजीत सिहं के विरुद्ध मदद के लिये सुबातु के एजेंट कर्नल को पत्र लिखा| बहुत से पहाड़ी क्षेत्रों ने अंग्रेजों की सिखों के विरुद्ध मदद की|
महाराजा रंजीत सिहं की मृत्यु के बाद तथा 9 मार्च 1846 की लाहौर संधि के बाद सतलुज ब्यास के क्षेत्रों पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया| 1846 ई. तक अंग्रेजों ने कांगड़ा, नूरपुर, गुलेर, जसवां, द्तारपुर, मंडी, सुकेत, कुल्लू और लाहौल-स्पीती को पूर्णत: अपने कब्जे में ले लिया|