Fairs & Festivals of Himachal Pradesh
प्रमुख पर्व एवं त्यौहार
हिमाचल प्रदेश के प्रमुख पर्व एवं त्यौहार को दो वर्गों में रखा जा सकता है-
1.ऋतुओं पर आधारित त्यौहार तथा 2. पौराणिक एवं स्थानीय त्यौहार।
1.ऋतुओं पर आधारित पर्व एवं त्यौहार
हिमाचल प्रदेश में मनाये जाने वाले ऋतुओं पर आधारित प्रमुख पर्व एवं त्यौहार निम्नलिखित हैं:-
A. वैशाखी
वैशाखी कृषि से जुड़ा सर्वाधिक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्यौहार है। उल्लेखनीय है कि ‘वैशाखी’ नाम ‘वैशाख’ से बना है। वैशाखी को शिमला के पहाड़ों में ‘विशु’ या ‘विशा’; किन्नौर में ‘बीस’; कांगड़ा में ‘बिसोबा’ तथा पांगी-चम्बा में ‘लिशू’ कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश में यह पर्व सामान्यतः वैशाखी के दिन (13 या 14 अप्रैल) मनाया जाता है, परंतु कहीं-कहीं वैशाखी से दो या तीन दिन पहले भी आरंभ हो जाता है।
B हरियाली या रहयाली
हिमाचल प्रदेश में सावन मास के पहले दिन वर्षा ऋतु का त्यौहार हरियाली’ या ‘रहयाली’ मनाया जाता है। इस पर्व को कांगड़ा में हरयाली’, ऊपरी शिमला में रहयाली’, जुब्बलकिनौर में ‘दखरैन’ तथा लाहौल में ‘शैगतरेम’ कहा जाता है। पहाड़ों में हरयाली के अवसर पर पशुओं को विश्राम दिया जाता है और हल में नहीं जोता जाता है। किसान अपने पालतू पशुओं के जूएँ, कीड़े और चीचड़ आदि निकालते हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘चीडाँ’ कहा जाता है।

C. रक्षा बंधन
रक्षा बंधन प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षा बंधन को हिन्दी में राखी, रखडी या रक्षा बंधन कहते हैं। शिमला के पहाड़ों में रक्षा बंधन को ‘रक्षा पुण्या’ मंडी तथा सिरमौर में ‘सलोनू’ या ‘सलूना’ तथा बिलासपुर में ‘राखिनुआ’ कहा जाता है। राखी को पूरा महीना बांधकर रखते हैं और सैरी आने पर ‘सैरी माता’ पर चढ़ा दी जाती है।
D. चेरवाल
आग का त्यौहार ‘चेरवाल’ भादों मास की पहली तिथि को मनाया जाता है। कुछ लोग इसे ‘पृतवीपूजा’ या ‘पृथ्वीपूजा’ भी कहते हैं।
– कुल्लू में इस त्यौहार को ‘बंदरांजो’ कहा जाता है जिसका अर्थ है भादों में मनाया जाने वाला त्यौहार । यहाँ यह त्यौहार ‘पशुपूजा‘ के रूप में मनाया जाता है।
– चम्बा में इस त्यौहार को ‘परतोरू’ कहा जाता है। यह वास्तव में यहाँ फूलों का त्यौहार है। इस उत्सव के उपलक्ष्य में ‘पतरोडू’ नामक विशेष पकवान तैयार किया जाता है।
Main festivals of Himachal Pradesh
E. जागरा
–‘जागरा’ कर्मकांड ग्राम देवता की सेवा के लिए किया जाता है। सागरा पर्व सामान्यतः भादों मास से ऊपरी शिमला क्षेत्रों किन्नौर तथा सिरमौर क्षेत्रों में ‘महासू देवता’ की याद में मनाया जाता है। ये महासू देवता की प्रशंसा में ‘बीसू’ गीत भी गाते हैं। मनाया जाता है।
F ‘फुलैच‘
फुलैच को ‘उख्यांग’ भी कहा जाता है जो वास्तव में दो शब्दों से मिलकर फूलों का त्यौहार है, जो भादों के उत्तरार्द्ध में अथवा औसुज के प्रारंभ बना है-‘उ’ और ‘ख्यांग’ । यहाँ ‘उ’ का अर्थ है कि ‘फूल’ तथा ‘ख्यांग’ का अर्थ है ‘फूल की ओर देखना अर्थात् ‘उख्याग’ का अर्थ फूलों की ओर देखने का आनंद होता है।
– फुलैच केवल किन्नौर में मनाया जाता है|
G.सैरी
-कांगड़ा घाटी के लोगों के लिए ‘सैरी’ एक प्रमुख त्यौहार है।
– सैरी का त्यौहार ‘औसुज’ के पहले दिन मनाया जाता है।
2. पौराणिक एवं स्थानीय त्यौहार – हिमाचल प्रदेश में मनाये जाने वाले प्रमुख पौराणिक एवं स्थानीय त्यौहार निम्नलिखित हैं:-
A. दशहरा
-पूरे भारतवर्ष की तरह हिमाचल प्रदेश में भी रावण पर राम की विजय के उपलक्ष्य में ‘दशहरा’ मनाया जाता है।
दशहरा पर्व प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की 10 वीं तिथि को मनाया जाता है।
B. दीपावली
-हिमाचल प्रदेश में प्रकाश का त्यौहार दीपावली, कार्तिक अमावस की रात को सौभाग्य और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी के पूजन के लिए मनाया जाता है।
-मंडी में दीपावली की रात को जलती ‘कहौर’ (घास के गोले) घुमाने का रिवाज है। हिमाचल के पहाड़ों में दीवाली’ अथवा ‘दियाली’; ‘द्याली’ या ‘बोरी दियाली’ का त्यौहार परंपरागत दीपावली से ठीक एक माह पश्चात् ‘मगहर की अमावस्या’ को मनाया जाता है।
–कुल्लू में बोरी दिआली : कुल्लू में दीवाली मनाने का ढंग है। इसमें संध्या वेला में गाँव के लोग एक जगह एकत्रित होकर आग जलाते हैं तथा स्थानीय भाषा में रामायण और महाभारत गाते हुए नृत्य करते हैं।
–लाहौल में दीपावली : लाहौल में मनाया जाने वाला दीपावली को ‘खोजाला’ कहा जाता है जो प्रतिवर्ष माघ माह के पूर्णमासी को मनाया जाता है। खोजाला के शुभ अवसर पर प्रत्येक घर से एक जलती हुई मशाल लाकर एक ऊँचे स्थान पर बड़ी आग जलायी जाती है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति गेफान और ब्रजेश्वरी देवी के नाम पर देवदार की पत्तियाँ डालते हैं। तत्पश्चात एक दूसरे पर बर्फ के गोले फेंकते हैं जिसे ‘भटका’ कहा जाता है। इस पूरे कार्यक्रम को ‘सद-हल्दा’ अर्थात् ‘देवताओं की खोज बत्ती’ कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में ‘द्याली’ का त्यौहार पौराणिक दीपावली से दो महीने बाद मनाया जाता है तथा इस दिन ‘बबरू’ नामक पकवान बनाये जाते हैं।
C. लोहाड़ी या माघी
-हिमाचल प्रदेश में लोहाड़ी का त्यौहार पौष के मासांत में प्रथम माघ (माघ कृष्णपक्ष प्रथमा तिथि) को मनाया जाता है। ऊपरी हिमाचल में लोहाड़ी का उत्सव ‘माघी’ या ‘साजा’ कहलाता है।
-लोहाड़ी से पूर्व एक मास तक ग्रामीण कृषक एवं श्रमिक बालाएँ घर-घर जाकर लोहाड़ी संबंधी गीत ‘लुहकड़ियाँ’ गाते हैं जिनके बदले लोग उन्हें अन्न-धन देते हैं।
D. महाशिवरात्रि
-महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है, जो पूरे हिमाचल प्रदेश में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
-महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का आरंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ ‘अग्निलिंग’ के उदय से हुआ और इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हआ था।
-हिमाचल प्रदेश में वृद्ध लोग इस त्यौहार की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन से उनकी आयु का एक वर्ष और बढ़ जाता है।
E.भुंडा, शांद और भोज
–भुंडा,शांत और भोज हिमाचल प्रदेश में मनाये जाने वाले बहुत ही रोचक त्योहार है| जिन्हें पहाड़ में हरिद्वार अथवा प्रयागराज के कुंभ जितना ही महत्व दिया जाता है| और ये 12 वर्ष के बाद मनाए जाते है|
-भुण्डा उत्सव किस से सम्बंधित है- भुंडा ब्राह्मणों को शांद या शांत राजपूत का तथा भोज कोलियों का त्योहार है| निरमंड का भुंडा उत्सव सर्वाधिक प्रसिद्ध है| इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध भुंडा का संबंध परशुराम की पूजा से है| हालांकि कुछ स्थानों पर काली की पूजा भी की जाती है|
– पहाड़ों में परशुराम की पूजा का प्रचलन पांच स्थानों क्रमश: मंडी में काओं और ममेल, कुल्लू में निरमंड और निरथ तथा उपरी शिमला में दतनगर|
नोट:-कुल्लू जिला में मनाए जाने वाले ‘भुंडा उत्सव’ को ‘हिमाचल का कुम्भ’ कहा जाता है|
शांद या शांत : शांद या शांत शब्द का शाब्दिक अर्थ शांति और समृद्धि होता है|
-हिमाचल प्रदेश में ‘शांत’ उत्सव’ कुछ गाँवों में हर 12 वर्ष में ‘खुद खश’ द्वारा जो की खशों की लड़ाकू उपशाखा है, मनाया जाता है|
-कुछ ‘शांत’ गाँवों में और कुछ मंदिरों की अपेक्षा पर्वतों की चोटियों पर मनाए जाते है|
भोज: भोज कोली लोग मनाते है| इस उत्सव में धर्मानुषठान और अन्य सेवाएं ‘शांद’ की तरह होती है|
F.नवाला
नवाला गद्दियों का त्योहार है जो कांगड़ा,चम्बा, मंडी और कुल्लू के कुछ गावों में मनाया जाता है| ‘नवाला’ एक परम्परिक उत्सव है और एक गृहस्थ की जीवन में एक बार अवश्य मानना पड़ता है|
G.साजो
-साजो त्यौहार का सबंध देवी देवताओं की विदाई से है| इस त्यौहार के अवसर पर गाँव में देवता की पालकी खोल दी जाती है| माना जाता है की वह इंद्रलोक चला गया|
– कुछ स्थानों पर इस दिन गाँव की देवता घर-घर ‘धूप पीने‘ जाता है| तथा इस दिन देउचर या देऊसेल भी होता है|
H.गोट्सी या गोची
-गोट्सी या गोची चंद्रभागा घाटी का अति लोकप्रिय त्यौहार है, जो फरवरी महीने में मनाया जाता है| गोट्सी पुत्र जन्म का त्यौहार है| यह उन्हीं घरों में मनाया जाता है| जिनके यहाँ विगत वर्ष पुत्र हुआ हो|
I. फगुली
-गोट्सी आदिम जनजाति का त्यौहार है, जो किन्नौर में बसंत पंचमी से जुड़ा है|
-फगुली त्यौहार के अवसर पर लोग कागज पर बने रावण के चित्र पर वाणों से निशाना लगाते है| जो कठिनता से ही लगता है| इसे ‘लंका मारना’ या ‘लंका दहन’ भी कहा जाता है| यह त्यौहार 5 दिनों तक मनाया जाता है|
-कुछ क्षेत्रों में फगुली ‘सावनियों’ का त्यौहार है|