– गुरु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
-का, की, कू, के, के, को, की
बिं,धः,इं.त: (अनुस्वार व् विसर्ग वाले वर्ण)
(इंदु) (बिंदु) (अतः) (अधः)
-अग्र का अ, वक्र का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण)
-राजन् का ज (हलन्त वर्ण के पहले का वर्ण)
3. संख्या और क्रम
वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।
> लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।
वर्णिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (वर्णों की) और क्रम
(लघु-गुरु का) दोनों समान होते हैं। जबकि मात्रिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (मात्राओं की)तो समान होती है,लेकिन क्रम (लघु-गुरु का) समान नहीं होते हैं।
4.गण (केवल वर्णिक छंदों के मामले में लागू)
> गण का अर्थ है ‘समूह’ ।
> यह समूह तीन वर्गों का होता है। गण में 3 ही वर्ण होते हैं, न अधिक न कम।
> अतः गण की परिभाषा होगी ‘लधु-गुरु के नियत क्रम से 3 वर्गों के समूह को गण कहा जाता है’।
गणों की संख्या 8 है
यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण|
– गणों को याद रखने के लिए सूत्र- यमाताराजभानसलगा
इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु (गा)के।
सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका
बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्गों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा।
5. गति
छंद के पढने के प्रवाह या लय को गति कहते है| गति का महत्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक होता है| बात यह है की वर्णिक छंदों में तो लधु गुरु का स्थान निश्चित रहता है| किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नही रहता, पुरे चरण की मात्राओं का निर्देश मात्र रहता है| मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गति (प्रवाह) ने बाधा पड़ सकती है|
6.यती विराम
छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर सांस लेने के लिए रुकना पड़ता है| इसी रुकने के स्थान को यती विराम कहते है|
7.तुक
छंद के चरणात के अक्षर-मैत्री (सम्मान स्वर-व्यंजन) की स्थापना की तुक कहते है|
छंद के भेद
वर्ण व् मात्राओं के आधार पर चरणों के विन्यास के आधार पर
1-वर्णिक छंद- वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या सम्मान रहती है| और लघु गुरु का क्रम समान बना रहता है|
2-मात्रिक छंद – मात्रिक छंद के सभी चरणों की संख्या तो समान रहती है लेकिन लघु गुरु के क्रम पर ध्यान नही दिया जाता|
3-मुक्त छंद – जिस विषम छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान न हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था तो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छंद है| उदाहरण: निराला की कविता ‘जूही की कली’ इत्यादि|